Tuesday, June 10, 2014

people of newyork

कुछेक हफ़्तों से तुम्हारे ख्वाबों के साथ उठता हूँ
अलसाई आखों में बड़े हसीन लगते हैं
एक नयी कहानी लिए हर रोज़
कभी तुम्हारी हँसी, फ़ोक म्यूजिक के साथ पिरोये हुए
कभी लिए सवाल पूछती आँखें
की कौन सी किताब पढ़ रहे हो आजकल
मैं नींद में होता हूँ जवाब नहीं देता
डरता हूँ कि कहीं किताबों के चक्कर में
ख्वाब न टूट जाएँ
और ये जो दो चार पल मिले हैं तुम्हारे साथ
ये फिर ग़ुम न हो जाएँ
पर फिर भी तुम कहाँ रूकती हो
कल तुम्हारा हाथ पकड़ के रोकना चाहा
तो अलार्म घडी नीचे गिर कर टूट गयी
पूरे कमरे में वक़्त फैला पड़ा है
शाम को जब ऑफिस से आकर
अकेला हो जाऊंगा तब समेटूंगा
फिर पुरानी तस्वीरों के साथ
तुम्हारी दी हुई किताब में रख दूंगा
वहाँ सेफ रहेगा यादों के साथ और फिर
तस्वीरों के पीछे लिखी कहानियां भी तो वहीँ रखीं हैं
शायद इसी बहाने उन पर वक्त की एक और परत चढ़ जाये 

No comments: